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देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये

साम्प्रदायिक कहकर जिससे दूर दूर रहते थे
राजनीती में कोई अछूत नहीं ,ये खेल देखिये

दूध मंहगा प्याज मंहगा और जीना मंहगा हो गया
छोड़ दो गाड़ी से जाना ,मँहगा अब तेल देखिये

कल तलक थे साथ जिसके, आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये

हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये

बात करते हैं सभी क्यों आज कल जनता की लोग
देखना है गर उन्हें ,साधारण दर्जें की रेल देखिये

मदन मोहन सक्सेना

आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से

आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

मदन मोहन सक्सेना

क़यामत से क़यामत तक हम इन्तजार कर लेंगें

बोलेंगे जो भी हमसे वो हम ऐतवार कर लेगें
जो कुछ भी उनको प्यारा है हम उनसे प्यार कर लेगें

वो मेरे पास आयेंगे ये सुनकर के ही सपनो में
क़यामत से क़यामत तक हम इंतजार कर लेगें

मेरे जो भी सपने है और सपनों में जो सूरत है
उसे दिल में हम सज़ा करके नजरें चार कर लेगें

जीवन भर की सब खुशियाँ उनके बिन अधूरी है
अर्पण आज उनको हम जीबन हजार कर देगें

हमको प्यार है उनसे और करते प्यार वो हमको
अपना प्यार सच्चा है हर मंजिल पर कर लेगें

क़यामत से क़यामत तक हम इन्तजार कर लेंगें

मदन मोहन सक्सेना

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अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें

कंक्रीटों के जंगल में नहीं लगता है मन अपना
जमीं भी हो गगन भी हो ऐसा घर बनातें हैं

ना ही रोशनी आये ,ना खुशबु ही बिखर पाये
हालत देखकर घर की पक्षी भी लजातें हैं

दीबारें ही दीवारें नजर आये घरों में क्यों
पड़ोसी से मिले नजरें तो कैसे मुहँ बनाते हैं

मिलने का चलन यारों ना जानें कब से गुम अब है
टी बी और नेट से ही समय अपना बिताते हैं

ना दिल में ही जगह यारों ना घर में ही जगह यारों
भूले से भी मेहमाँ को नहीं घर में टिकाते हैं

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें
घर में ,दिल की बात दिल में ही यारों अब दबातें हैं

अब सन्नाटे के घेरे में ,जरुरत भर ही आबाजें
मदन मोहन सक्सेना

13

ग़ज़ल (किस ज़माने की बात करते हो )

किस ज़माने की बात करते हो
रिश्तें निभाने की बात करते हो

अहसान ज़माने का है यार मुझ पर
क्यों राय भुलाने की बात करते हो

जिसे देखे हुए हो गया अर्सा मुझे
दिल में समाने की बात करते हो

तन्हा गुजरी है उम्र क्या कहिये
जज़्बात दबाने की बात करते हो

गर तेरा संग हो गया होता “मदन ”
जिंदगानी लुटाने की बात करते हो

ग़ज़ल (किस ज़माने की बात करते हो )1064223796

मदन मोहन सक्सेना

अमन चैन से रहने बाले दंगे से दो चार हुए

कुर्सी और वोट की खातिर काट काट के सूबे बनते
नेताओं के जाने कैसे कैसे , अब ब्यबहार हुए

दिल्ली में कोई भूखा बैठा, कोई अनशन पर बैठ गया
भूख किसे कहतें हैं नेता उससे अब दो चार हुए

नेता क्या अभिनेता क्या अफसर हो या साधू जी
पग धरते ही जेल के अन्दर सब के सब बीमार हुए

कैसा दौर चला है यारों गंदी हो गयी राजनीती अब
अमन चैन से रहने बाले दंगे से दो चार हुए

दादी को नहीं दबा मिली और मुन्ने का भी दूध खत्म
कर्फ्यू में मौका परस्त को लाखों के ब्यापार हुए

तिल का ताड़ बना डाला क्यों आज सियासतदारों ने
आज बापू तेरे देश में, कैसे -कैसे अत्याचार हुए

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई
ख्बाजा और साईं के घर में बातें क्यों बेकार हुए

अमन चैन से रहने बाले दंगे से दो चार हुए

मदन मोहन सक्सेना

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प्रीत मुस्कराई

नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई
प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे
फिर मिलन की ऋतू आयी भागी तन्हाई

दिल से फिर दिल का करार होने लगा
खुद ही फिर खुद से प्यार होने लगा
नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई

प्रीत मुस्कराई
मदन मोहन सक्सेना

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से

दिल के पास है लेकिन निगाहों से जो ओझल है
ख्बाबों में अक्सर वह हमारे पास आती है

अपनों संग समय गुजरे इससे बेहतर क्या होगा
कोई तन्हा रहना नहीं चाहें मजबूरी बनाती है

किसी के हाल पर यारों,कौन कब आसूँ बहाता है
बिना मेहनत के मंजिल कब किसके हाथ आती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से
दशा कैसी भी अपनी हो किसको रास आती है

दिल की बात दिल में ही दफ़न कर लो तो अच्छा है
पत्थर दिल ज़माने में कहीं ये बात भाती है

भरोसा खुद पर करके जो समय की नब्ज़ को जानें
“मदन ” हताशा और नाकामी उनसे दूर जाती है

क्यों हर कोई परेशां है बगल बाले की किस्मत से

मदन मोहन सक्सेना

अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

बँट गयी सारी जमी फिर बँट गया ये आसमान
अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से

अब खुदा बँटने लगा है इस तरह की तूल से

मदन मोहन सक्सेना

किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना

दुनिया में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए बह रास्ते नहीं मिलते

किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे हैं दिल से दिल नहीं मिलते

करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते

ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते

कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते हैं
मुश्किल अपनी ये है कि हकीक़त में नहीं मिलते

किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मदन मोहन सक्सेना